सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 4 अक्टूबर बुधवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई व उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि संसार में कोई वस्तु या व्यक्ति स्थाई या शाश्वत नहीं है।सं सरति इति संसार: अर्थात् जो निरन्तर चलायमान है वह संसार है। यहाँ शाश्वत की कल्पना करना व्यर्थ है। जब व्यक्ति की आयु ही शाश्वत नहीं है तो अन्य वस्तु की शाश्वतता कैसे बन सकती है।आयु प्रति समय नष्ट हो रही है।वह कभी भी लौटकर नहीं आने वाली है।जैसे नदी पर्वत से गिरती है और पुन: लौटकर नहीं आती है।आयु कर्म का अन्त कब हो जाएगा कहा नहीं जा सकता है।संसार की अनित्यता का ज्ञान होने पर वैराग्य भावना दृढ होती है।बारह भावना का चिन्तन-मनन संसार-शरीर-भोगों से दूर ले जाकर सुख का मार्ग बताने वाला है।आचार्यों ने बारह भावना को वैराग्य की जननी कहा है।तीर्थकरों के वैराग्य के समय लौकान्तिक देव आकर इसी बारह भावना के द्वारा उनके वैराग्य की प्रशंसा और अनुमोदना करते है।धर्मसभा के पूर्व बिजौलियाँ से आई महिला मण्डल ने मुनिश्री के पाद प्रक्षालन और शास्त्र दान का सौभाग्य प्राप्त किया।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।