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संसार की सम्पत्ति जादूगर की जादूगरी के समान है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 05 अक्टूबर गुरुवार को प्रातःकाल अभिषेक व शांतिधारा हुई व उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन अंजुली में भरे जल की तरह है जो हर पल कम हो रहा है।संसारी प्राणी इस सत्यता को जान‌कर भी उससे आँखे मूंद कर बैठा है।संसार के सारे रिश्ते नाते, धन-सम्पदा अनित्य है।जब तक आँख खुली है तब तक अपने है और आँख बन्द होते ही सब समाप्त हो जाते हैं।आचार्य कहते हैं कि संसार की सम्पत्ति जादूगर की जादूगरी के समान है।अभी है,कुछ समय बाद नहीं रहती है।इन्द्रिय विषय भी बादल से बने नगर के समान है,एक हवा का झोका लगते ही सब ओझल हो जाते हैं।जिन्हें वैराग्य उत्पन्न होता है वे इन भौतिक नश्वर वस्तुओं से दूर अपने शाश्वत आत्मतत्व की ओर दृष्टिपात करते है।सनत्कुमार चक्रवर्ती को अपने रूप पर बहुत नाज था परन्तु वही रूप थोड़ी ही देर में समाप्त हो गया और सारे शरीर में कुष्ठरोग उत्पन्न हो गया।मुनि दीक्षा लेने के बाद देव परीक्षा के लिए वैद्य बन कर आता है तो वे कहते है इस शारीरिक रोग से बडा रोग लगा है उसे दूर करने की औषध चाहिए।जन्म,जरा मृत्यु का रोग है।देव कहता है कि उसकी औषधि तो आपके पास ही है।यह वैराग्य भाव जो शरीर की अनित्यता को जान कर उत्पन्न हुआ है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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