सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 6 अक्टूबर शुक्रवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई व उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि पूजा प्रारंभ करने के पूर्व इष्ट का आह्वान किया जाता है और उन्हें अपने हृदय कमल पर विराजमान किया जाता है।भगवान की पूजा,भक्ति को आचार्य ने यज्ञ कहा है।यह यज्ञ बिना अग्नि और आहुतियों का होता है।प्रभु के प्रति भक्ति के उद्गार और हृदय की भावना ही यज्ञ सामग्री है।प्रभु के प्रति समर्पण ही फल है जो कि भक्त को भी भगवान बनाने में समर्थ है।देव शास्त्र गुरु की ही पूजा क्यों करना चाहिए ? आचार्य कहते हैं कि देव हमारे लिए आदर्श हैं तो शास्त्र मार्गदर्शक हैं और गुरु उस मार्ग पर चलाने वाले है।देव-शास्त्र-गुरु का सम्मान व्यक्ति के स्वयं के अन्दर बैठे भावी भगवान् के सम्मान की तरह है।जो भगवान् की पूजा करता है,वह भी एक दिन पूजा को प्राप्त होता है।प्रभु पूजा तनाव,अवसाद आदि असाध्य रोगों को भी दूर कर देती है।प्रभु का सत्संग ऐसा होता है जो मनवाँछित फल प्रदान करता है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।