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भारतीय धार्मिक संस्कृति जैन दर्शन के बिना अधूरी है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज व मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज के सानिध्य में 7 अक्टूबर शनिवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई वही उसके बाद मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय धार्मिक संस्कृति जैन दर्शन के बिना अधूरी है।जैन दर्शन के विषय में वर्तमान के साहित्य में सही और समुचित जानकारी नहीं दी गई है।आज का साहित्य भगवान महावीर स्वामी को जैन धर्म का संस्थापक मानता है जो कि सही नहीं है।जैन धर्म तो अनादिनिधन धर्म है,भगवान् महावीर स्वामी ने उसका प्रचार- प्रसार किया और उनके पूर्व में 23 तीर्थंकरों ने जैन धर्म का प्रचार-प्रसार किया।भगवान् ऋषभदेव वर्तमान समय के प्रथम तीर्थकर हुए जिन्हें कर्मभूमि की व्यवस्था बनाने के कारण प्रजापति या आदि बह्मा भी कहा जाता है।भगवान् ऋषभदेव का जन्म शास्वत भूमि अयोध्या में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र के करोड़ो वर्ष पूर्व हुआ था।उन्हें के पुत्र अर्ककीर्ति द्वारा स्थापित सुर्यवंश में श्री रामचन्द्र का जन्म हुआ।अयोध्या तीर्थ और सम्मेदशिखर जी सिद्ध क्षेत्र ये हमेशा रहने वाले क्षेत्र है और जैन धर्म के सभी तीर्थंकरों का जन्म अयोध्या में तथा मोक्ष सम्मेदशिखर जी से ही होता है,काल दोष के कारण वर्तमान में ऐसा नहीं हुआ।उस शाश्वत तीर्थक्षेत्र अयोध्या के विकास के लिए तीर्थक्षेत्र कमेटी ने भारत वर्ष के लोगों को जोड़ने तथा शाश्वत तीर्थ की जानकारी देने हेतु यह रथ यात्रा निकाली है।आज अयोध्या विश्व प्रसिद्ध हो गई है अतः वहां पर जैन दर्शन की अमिट छाप बनाकर भगवान ऋषभदेव का प्रचार-प्रसार अच्छे से हो सकता है।आज 07 अक्टूबर शनिवार को अयोध्या तीर्थंक्षैत्र से आये रथ की नगर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई।रथ में विराजमान श्री ऋषभदेव भगवान की पूजा अर्चना की गई।सोधर्मइन्द्र बनने का सौभाग्य कैलाशचन्द्र,सोरभकुमार बगड़ा परिवार को प्राप्त हुआ,कुबेर-इन्द्र बनने का सौभाग्य प्रकाशचन्द्र, कपिलकुमार,अरविन्दकुमार ताथेडिया परिवार को प्राप्त हुआ वहीं पालना झुलाने का सौभाग्य कैलाशचन्द्र,निर्मलकुमार,निलेश कुमार साकुण्या परिवार को प्राप्त हुआ जबकि आरती करने का सौभाग्य लादुलाल,हितेशकुमार ठग परिवार को प्राप्त हुआ।इस अवसर पर सभी समाजजन ने रथ में विराजमान भगवान के दर्शन किए।

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