सिंगोली(निखिल रजनाती)।मानव जीवन में द्रव्य,क्षेत्र और काल का प्रभाव उसके भावों पर भी पडता है।यदि द्रव्य अर्थात् धन धान्य शुद्ध है तो भाव भी शुद्ध होंगे और यदि द्रव्य शुद्ध नहीं है अर्थात अन्याय अनीति से कमाया धन है तो उसका प्रभाव भावों में अशुद्धि के रूप में आयेगा।कहा भी जाता है जैसा खावे अन्न वैसा होवे मन और जैसा पीवे पानी वैसी होवे वाणी।अन्याय अनीति के द्रव्य का सेवन करने के कारण ही भीष्म पितामह भरी सभा में द्रौपदी के चीरहरण के समय भी मौन रहे।न्याय-नीति से कमाए द्रव्य को ग्रहण करने वाला कोई भी हो उसका मन शुद्ध ही होता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 8 अक्टूबर रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि द्रव्य का जैसा प्रभाव भावों पर होता है वैसा ही प्रभाव क्षेत्र का भी पड़ता है।घर में धर्म में मन कम लगता है,मन्दिर में उससे अधिक तो तीर्थक्षेत्रों में उससे अधिक मन लगता है।क्षेत्र के कारण भावों में परिवर्तन आता है।श्रवणकुमार के भावों में क्षेत्र के कारण ऐसा परिवर्तन आया कि वह मातृ-पितृ भक्त भी उन्हें छोड़ कर जाने लगा।यदि क्षेत्र शुद्ध नहीं होता है तो जिनालय,घर आदि में रहने वालों पर विपरीत प्रभाव होता है।घर में रसोईघर इसलिए ऐसी जगह बनाना चाहिए जहाँ अशुद्धि आदि न हो।काल का प्रभाव भी भावों पर पड़ता है।यदि शोक का समय हो तो व्यक्ति के आसपास का भी वातावरण शोकमय हो जाता है।दूसरों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है।अशुद्धि के काल में महिला यदि आचार या पापड़ को देख ले या उसकी परछाई उन पर पड़ जाए तो वे भी खराब हो जाते हैं।काल की शुद्धि भी भावों की शुद्धि के लिए अनिवार्य है।दूसरों के भावों पर हमारे भावों का प्रभाव पड़ता है।दूसरों के प्रति मन में दुर्भावना है तो उसके मन में भी आपके प्रति दुर्भावना उत्पन्न हो जायेगी इसलिए हमारे आचार्यों ने कहा है कि द्रव्य,क्षेत्र,काल और भाव की शुद्धि का ध्यान रखो।वर्तमान में वैज्ञानिकों ने इस बात को विज्ञान के माध्यम से सिद्ध भी किया है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।