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प्रभु की पूजा सुख प्रदान करने वाली तथा कर्मों की निर्जरा प्राप्त कराने वाली है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।प्रभु की पूजा सुख प्रदान करने वाली तथा कर्मों की निर्जरा प्राप्त कराने वाली है।जैन दर्शन में देव-शास्त्र-एक की पूजा हेतु आठ द्रव्य कहे हैं।सभी द्रव्य को अपने -अपने गुणों के कारण चढ़ाते है। सर्वप्रथम जल चढ़ाते हैं,जन्म जरा मृत्यु के नाश के लिए।जल ही क्यों चढाते हैं तो आचार्य कहते है कि उसकी विशेषताओं के कारण ही जल चढ़ाते है।जिस प्रकार लौकिक जीवन में गंदगी को स्वच्छ करने के लिए जल का प्रयोग करते है उसी प्रकार अध्यात्मिक जीवन में आत्मा में लगी गंदगी को निकालने के लिए ध्यान रूपी जल की आवश्यता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने 9 अक्टूबर सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जल के स्वभाव शीतलता,समाहितता,सहिष्णुता तरलता और विनम्रता इनको जो अपने जीवन में अपनाते हैं उनका जीवन जलवत् होता है।जल में कभी उफान नहीं आता है,वह अग्नि के द्वारा गर्म किए जाने पर भी अपने पात्र से बाहर नहीं आता है।हमें अपना जीवन जल के समान सहिष्णु बनाना चाहिए।जलवत तरल जीवन बनाओ।जैसे जल जब तक शान्त नहीं होगा तब तक कोई उसमें अपना चेहरा नहीं देख सकता है।जल का जीवन शान्त और गंभीर होता है। वह ऊपर-उछल कूद करता है परन्तु शान्त होकर बहता है।हमें भी जल के समान शान्त और शीतल रहना होगा।

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