सिंगोली(निखिल रजनाती)।तन की दाह को शान्त करने में चन्दन काम आता है और मन या आत्मा की दाह को शान्त करने के लिए प्रभु चरणों की धुलि रूपी चन्दन काम आता है।प्रभु भक्ति तन-मन को शान्त करने वाली होती है।प्रभु का चित्त चन्दन से भी अधिक शीतल है और भक्त का चित्त अशान्त है।अतः भक्ति रूपी चन्दन को प्राप्त कर चित्त को शान्त करने की भावना से यह मलयागिरी चन्दन भगवान के चरणो में भक्त समर्पित करता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 10 अक्टूबर मंगलवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि प्रभु भक्ति में चन्दन ही क्यों समर्पित करते है जबकि और भी पदार्थ शीतल होते है तो आचार्य कहते हैं कि चन्दन हर अवस्था में अपना शीतलता और सुगन्ध रूप स्वभाव को नहीं छोड़ता है।उसे घिसा जाए तो भी वह शीतलता तथा सुगन्ध प्रदान करता है।उसे जलाया जाए तब भी वह सुगन्ध ही देता है।दूसरों को चन्दन का तिलक लगाने पर दूसरों को भी और तिलक लगाने वाले को भी सुगन्ध व शीतलता प्रदान करता है उसी प्रकार भगवान आपका जीवन भी चन्दन के समान स्व और पर दोनों के लिए शीतलकारी और अनन्त-चतुष्ट्य की सुगन्ध से भरने वाला है जिस प्रकार सर्प चन्दन के वृक्ष पर लिपट जाता है परन्तु वृक्ष कभी भी विष को ग्रहण नहीं करना है उसी प्रकार भगवान आप भी समवशरणदि विभूति से सहित है परन्तु उससे अलिप्त रहते हैं।संसार की दाह को समाप्त कर आप अन्य को भी शीतलता का मार्ग प्रदान कर रहे हो।भगवान की शीतलता भव-भव के संताप नष्ट कर देती है।