सिंगोली(निखिल रजनाती)। भगवान् ने कर्म रूपी ईंधन को तप रूपी अग्नि से जलाकर आत्मिक गुणों की सुगन्ध अपने में प्रकट करते हैं।उन आत्मिक गुणों की सुगन्ध प्राप्त करने के लिए भगवान के चरणों में दशांग धूप अग्नि में समर्पित करता हूँ।आज विश्व में आतंकवाद और नक्सलवाद पनपने का मुख्य कारण वैचारिक कट्टरता है।हमारे विचार ही सही हैं,यह वैचारिक कट्टरता व्यक्ति को ही नहीं समाज,देश,परिवार को पतन की ओर ले जाती है।जो विचार को दूसरों पर थोपते है वे उन पर अत्याचार करते हैं।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 13 अक्टूबर शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जो खुले विचार वाले होते हैं वे सही बात को स्वीकार करते है,वे कभी कट्टरता नहीं रखते है,वे गलत को गलत और सही को सही स्वीकार करते है।जीवन में प्रगति का सूत्र यही है।आचार्य कहते है कि व्यक्ति को मेरा सो खरा नहीं,खरा सो मेरा स्वीकार करना चाहिए।आगम की बात खरी है क्योंकि तीर्थकरों की वाणी है।आगम में जो कहा है वह सही है उसमें मेरी ओर से कोई नई बात नहीं जोड़ूँगा।यह खुले विचार को रखने वाले की सोच होती है।खुली मानसिकता के साथ जो जीवन जीता है वह उन्नति को प्राप्त करता है।भगवान की वाणी को सुनकर कर्मों को नष्टकर आत्मा को सुख स्थान पर पहुँचाने हेतु सुगन्धित धूप चढ़ाकर भगवान की पूजा करते हैं।