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आत्मघात करने वाला स्वयं पर नियंत्रण नहीं कर पाता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।प्रत्येक साधक की यही भावना रहती है कि उसकी साधना का अन्त समाधिमरणपूर्वक ही हो। समाधि आत्मघात नहीं है क्योंकि आत्मघात के साथ संक्लेश परिणाम होते है जबकि समाधि के समय संक्लेश परिणाम नहीं रहते है।आत्मघात करने वाला स्वयं पर नियंत्रण नहीं कर पाता है और मन के उद्वेग में यहा-तदा प्रवृत्ति कर नवीन कर्मों को प्राप्त करते हैं।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज के सानिध्य में आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज के समाधि दिवस पर 14 अक्टूबर शनिवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आज परमपूज्य चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य से दीक्षित प्रथम मुनि एवं उनके पद पर विराजित हुए आचार्य श्री वीरसागर जी का समाधि दिवस मना रहे है।आचार्य वीर सागर जी महाराज विद्याध्ययन अधिक ध्यान दिया।वे प्रकृति निकट बैठकर अपना धर्मध्यान करते थे वे शिष्यों को भी ज्ञानार्जन करने की प्रेरणा देते थे।आपका जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास ईर गाँव में माता भाग्वती और पिता रामसुख के घर में सन् 1873 में जन्म हुआ।आचार्य कहते हैं कि सुख खोज का कार्य अन्तरंग में करो।संस्कार जैसे डाले जाते है वैसा ही जीवन बनता है।बचपन में बालक का नाम रखा गया हीरालाल।हीरालाल को दुनिया का कार्य नहीं जमा,उन्होंने अन्यमार्गों को छोड़कर समीचीन मोक्षमार्ग को पकड़ा।दीक्षा हेतु गुरु की आवश्यकता होती है।18 वर्ष की आयु में ऐलक पन्नालाल जी से ब्रह्मचर्म व्रत की प्रतिज्ञा ली और साधना का मार्ग प्रारंभ कर दिया। सन् 1923 में कुम्भोज में प. पू. प्रथमाचार्य श्री शान्ति सागर जी महाराज से क्षुल्लक पद को 1924 आश्विन शु.द्वितीया को मुनि दीक्षा प्राप्त की।32 वर्ष के लगभग मुनिपद में रहकर धर्मप्रभावना और धर्म साधना की। आचार्य श्री शान्तिसागर जी महाराज ने उन्हें अपने आचार्य पद पर पत्र द्वारा नियुक्त किया। आ.श्री वीर सागर जी ने चतुर्विध संघ बनाकर धर्म प्रचार हेतु मुनिधर्म में वृद्धि की।सन् 1957 में जयपुर खानिया जी में आज के ही दिन उन्होंने इस नश्वर काया को छोड़कर स्वर्ग स्थान प्राप्त किया।उनके समान सहनशीलता और ज्ञानार्जन की लालसा हमें भी बनी रहे।इस अवसर पर सभी समाजजनों ने भक्ति भाव के साथ आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज  की पूजन की। इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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