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बड़े से बड़ा और असंभव लगने वाला कार्य भी मन की शक्ति से संभव हो जाता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।सभी संसारी प्राणियों में अनन्त शक्ति है और जो प्राणी मन वाले हैं उनके मन की अपार शक्ति है।मन पलक झपकते ही हजारों हजार मील की यात्रा पूर्ण कर लेता है।बड़े से बड़ा और असंभव लगने वाला कार्य भी मन की शक्ति से संभव हो जाता है।यह बात सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 15 अक्टूबर रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने वकहा कि परन्तु मन की वह शक्ति अभी बिखरी हुई है।स्पर्शन,रसना घ्राण,चक्षु और कर्ण इन पांचों इन्द्रियों के विषय की ओर शक्ति बिखरी हुई है।मन की उस बिखरी हुई शक्ति को एकत्रित और केन्द्रित करने की आवश्यकता है जिसके द्वारा अभीष्ट फल की प्राप्ति हो सके।जिस प्रकार सुर्य की किरणें इधर- उधर बिखरी रहती है तो उसमें दाहक शक्ति नही आ पाती है।यंग विशेष से उसे एकत्रित और केन्द्रित कर दिया जाए तो उसमें दहन करने की क्षमता आ जाती है।मन को संयम रूपी यंत्र से नियंत्रित करके आत्म केन्द्रित कर दिया जाए तो वह कर्म का दहन करने वाला हो सकता है।मन को नियंत्रित करने के लिए साधना की आवश्यकता होती है।मन को साधने के लिए क्रोध,मान,माया और लोभ का परिहार करना होगा।मन पर नियंत्रण के लिए आत्म चिन्तन करना होगा और संसार-शरीर-भोगों का चिन्तन करना होगा।जब तक हम मन का सदुपयोग नहीं करते हैं तब तक जीवन की सार्थकता की प्राप्ति नहीं हो सकेगी।आचार्य कहते है कि मन को मारना नहीं है,उसे परिवर्तित करना है।उसी गति पर नियंत्रण करना है।नियंत्रण एकदम से नहीं करना है,धीरे-2 गति सीमा तक धीरे करें ताकि उर्ध्व गमन के लिए पर्याप्त समय मिल सके।मुनिश्री ससंघ के सानिध्य में आगामी 24 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक आयोजित होने वाले आचार्य पदारोहण शताब्दी समारोह के लिए सिंगोली दिगम्बर जैन समाज द्वारा आस-पास के सभी गांवों में निवासरत जैन समाज‌ को घर-घर जाकर निमंत्रण पत्र देकर कार्यक्रम में आने का आह्वान किया जा रहा है।28 अक्टुबर को सायं काल 7 बजे से भव्य भजन संध्या का आयोजन होगा जिसमें इन्दौर से पधार रहे गायक कलाकार श्री मयूर जैन द्वारा भजनों की प्रस्तुति दी जाएगी।

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