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इच्छा करो तो सर्वश्रेष्ठ फल की इच्छा करो - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।संसारी प्राणी जो भी कार्य करता है उसके बदले फल की इच्छा करता है।भगवान् की भक्ति करते हुए भी वह फल की वांछा करता है।अगर वह सांसारिक भोगाकांक्षा की इच्छा करता है तो उसकी वह भक्ति- पूजा व्यर्थ चली गई समझो।फल मांगना ही है तो ऐसा मांगो जो हमेशा हमेशा बना रहे जिसमें कोई विकृति न आए,जिसे कोई ले न सके जिसका उपभोग आप ही कर सको।देव शास्त्र-गुरु की पूजा में आठवां द्रव्य फल है जो मोक्षफल की प्राप्ति के लिए चढ़ाया जाता है।फल में श्रीफल भी चढाते हैं जो हमें आत्म ज्ञान देता है।उसके ऊपर जटा रहती है,हमारे ऊपर चमड़ी का आवरण है,अन्दर कठोर छिलका रहता है,हमारे शरीर में अन्दर हड्डियों का कठोर आवरण है,उसके अन्दर खोपरे के गोले पर काला पतला आवरण है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 16 अक्टूबर सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि हमारी आत्मा पर कर्मों का काला पतला आवरण है,उसके अन्दर सफेद गोले के समान उज्जवल शुद्ध आत्मा बैठी है।श्रीफल चढाकर शुद्धात्म तत्व की फल की प्राप्ति की भावना रखते हैं।आचार्य कहते हैं कि फल प्राप्ति की इच्छा है तो सर्वश्रेष्ठ फल की इच्छा करो।मोक्ष फल ही सर्वश्रेष्ठ फल है,उससे अच्छा और बड़ा कोई फल नहीं हो सकता है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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