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तीर्थंकर की धर्मसभा का नाम समवशरण सभा होता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(निखिल रजनाती)।इष्ट के गुणों का वर्णन स्तुति,पूजा,भजन आदि के माध्यम से किया जाता है।आचार्यों ने इस प्रकार गुणगान को जयमाला कहा है।जयमाला  अर्थात यशोगान करना/अरिहंत परमात्मा 46 गुणों से सहित तथा क्रमों की 63 प्रकृति नाश करते हैं।18 दोषों से रहित हो कर सुख का अनुभव करते हैं।इन विशिष्ट गुणों के कारण अरिहंत परमात्मा अन्य सभी देवी-देवताओं से भी श्रेष्ठ है।तीर्थकर अरिहन्त ही है धर्म का प्रचार-प्रसार करते हैं।तीर्थकर की धर्मसभा का नाम समवशरण सभा होता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 18 अक्टूबर बुधवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जिसकी रचना गोलाकार पृथ्वी से कई योजन ऊपर एक इन्द्र नील मणी की बनाई गई जिस पर प्रति समतल रूप से खातिका भूमि,लता मण्डप भूमि चैन्य प्रसार भूमि,उपवन भूमि आदि के वैभव का वर्णन मुख से कहा नहीं जा सकता है,उस भूमि का स्पर्श ही असंख्या कर्मों की निर्जरा करा देता है तो फिर भगवान के दर्शन से अनन्तगुनी निर्जरा होगी जो आत्मकल्याण के लिए काम ही आएगी।इस अवसर पर सभी समाजजन धर्मसभा में उपस्थित थे।

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