सिंगोली(निखिल रजनाती)।जिनेन्द्र भगवान की वाणी जो कि समवशरण में खिरती है तथा गणधरों के द्वारा द्वादशांग रूप से गुथी जाती है उसे जिनवाणी कहते है।जिनवाणी के द्वारा भगवान् और गुरु की अनुपस्थिति या अनुपलब्धता के समय कल्याण का मार्ग प्राप्त होता है।जिनवाणी मार्गदर्शक का कार्य करती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 21 अक्टूबर शनिवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि तीर्थकर भगवन्तों के द्वारा प्रतिपादित जिन धर्म को सभी जीवों तक पहुँचाने का एक सरल और सशक्त माध्यम है जिनवाणी /भगवान् के द्वारा कहा गया एक-एक शब्द बहुमूल्य और आत्म- कल्याण का मार्ग बताने वाला है।जिनवाणी को आचार्यों ने गंगा नदी के समान कहा है जो तीर्थकर रूपी हिमालय से निकली है,गणधरों रूपी कुण्ड में पहुँचकर संसार के सभी प्राणियों को पाप छोडने और आत्महित का उपदेश दे रही है।कुछ लोग जिनवाणी में जनवाणी अर्थात् मनमाना विषय डालकर परिवर्तन कर रहे हैं,ऐसे तथाकथित विद्वानों से बचना होगा और उन्हें समाज व धर्म से दूर कर उनकी रक्षा करनी होगी।कुछ धर्मग्रंथों में अपने मतलब की बातों को अन्डरलाइन करते हैं और जो उनके प्रयोजन की नहीं है उसे अन्डर ग्रांऊड कर देते हैं।वे लोग ऐसा करके दूसरों से नहीं स्वयं से धोखा करते हैं।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।