सिंगोली(निखिल रजनाती)।सिंगोली नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 22 अक्टूबर रविवार को दोपहर 1:30 बजे केशलोच किया।मुनिश्री का चातुर्मास के दौरान नगर में दूसरी बार केशलोच किया।दिगम्बर मुनि एक बार केशलोच के बाद दूसरी बार केशलोच कम से कम दो माह और अधिक से अधिक 4 माह में करते है।यह इनकी तपस्या का अनिवार्य हिस्सा है।केशलोच करते हुए मुनिश्री घास फूस की तरह अपने हाथों से सिर,मूंछ और दाढ़ी के बालों को उखाड़ते हैं।साधु शरीर की सुन्दरता को नष्ट करने और अहिंसा धर्म पालन के लिए केशलोच करते हैं।बालों को निकालते समय कण्डै की राख का उपयोग करते हैं ताकि पसीने के कारण हाथ न फिसल जाए।दिगम्बर साधु केशलोच करते समय यह भाव रखते है कि कर्मो की निर्जरा हो रही है और पाप कर्म निकल रहे है जिससे दर्द का अनुभव भी नहीं होता।मुनिश्री अपने हाथों से बालों को उखाड़कर दिगम्बर संत इस बात का परिचय देते हैं कि जैन धर्म कहने का नहीं बल्कि सहने वालों का धर्म है।जैन धर्म में साधु-संत कठिन से कठिन तपस्या को सहजता से सहन कर लेते हैं वही मुनिश्री के सानिध्य में प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा हुई व उसके बाद समाज के द्वारा संगीतमय श्री शान्तिमण्डल विधान हुआ जिसमें बडी संख्या में समाजजनों ने पूजन में बैठ कर पुण्य अर्जन किया।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।