आचार्य पदारोहण शताब्दी वर्ष का आगाज 24 अक्टूबर से
सिंगोली(निखिल रजनाती)।जिनेन्द्र भगवान् की वाणी को ग्रंथ रूप बनाने पर वह जिनवाणी कहलाती है,उस ग्रंथ रूप जिनवाणी की पूजा रोज करते है परन्तु पूजा करने मात्र से वह हमारे लिए लाभप्रद नहीं बन जाती है उसका पारायण करके जीवन में उतारने पर लाभप्रद होती है।जिनवाणी को अलमारियों में सजाकर मत रखो,उससे अपने हृदय को सजा लो।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 23 अक्टूबर सोमवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि जैसे घर में कोई नया मेहमान आता है तो उसका सत्कार करते हैं उसी प्रकार आत्म तत्व कहाँ है जिनवाणी से उसकी खोज कर उसका सत्कार कर लो।जिनवाणी हमें देव और गुरु से जोड़ने वाला पुल है।जिनवाणी से श्रमण-चर्या तथा उत्कृष्ट श्रावक चर्या का ज्ञान प्राप्त होता है।नगर सिंगोली में 24 अक्टूबर मंगलवार को आचार्य पदारोहण शताब्दी वर्ष के प्रारम्भ अवसर पर चारित्र चक्रवर्ती प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर जी महामुनिराज का व्यक्तित्व परिचर्चा के प्रथम दिन प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शांतिधारा होगी एवं प्रातःकाल 8 बजे मंगलाचरण,चित्र अनावरण,दीप प्रज्वलन 8:10 बजे परम पूज्य चा.च.प्रथमाचार्य श्री शान्तिसागर जी महामुनिराज की संगीतमय महापूजन,8:45 बजे मुनिद्वय को शास्त्र दान, 8:50 बजे से परिचर्चा प्रारंभ होगी जिसमें आचार्य श्रीजी का ग्रहस्थ जीवन आचार्य श्री की वंश परम्परा,माता पिता व परिजन परिचय,आचार्य श्री का व्रती जीवन(क्षुल्लक,ऐलक,मुनि दिक्षा) आचार्य श्रीजी के द्वारा प्रदत्त मुनि,आर्यिका,ऐलक, क्षुल्लक,क्षुल्लिका दीक्षा आचार्य श्रीजी द्वारा किए गए व्रत उपवास एवं जाप का वर्णन व आचार्य श्रीजी एवं पूर्वकालिक तत्कालिन मुनिचर्या द्वारा अलग-अलग वक्ताओं द्वारा परिचर्चा होगी तत्पश्चात मुनिश्री के प्रवचन व सायं काल 6:15 बजे आचार्य वन्दना संगीतमय महाआरती व 8 बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम,आचार्य श्रीजी के जीवन पर आधारित वीडियो का प्रदर्शन होगा वहीं मेवाड़ प्रान्त में प्रथम बार शताब्दी वर्ष महोत्सव मनाया जा रहा है जिसको लेकर नगर को दुल्हन की तरह सजाया गया है।इस सम्पूर्ण धार्मिक कार्यक्रम में मेवाड़ प्रान्त व आसपास के नगरों के समाजजन उपस्थित रहेंगे।