सिंगोली(माधवीराजे)। व्यक्ति शान्ति चाहता है और उसके लिए बाहरी पुरुषार्थ करता है परन्तु अन्तरंग से पुरुषार्थ नहीं करता है।जब तक मन में शान्ति नहीं होगी तब तक बाहर शान्ति नहीं आ सकती है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 2 नवंबर गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि वर्तमान में संसारी प्राणी शान्ति प्राप्त करने के लिए बहुत प्रयत्न करता है।वह ज्योतिषियों के पास जाता है तो कभी पूजा-पाठ कराने पण्डितों के पास जाता है तो कभी वास्तु ठीक कराने वास्तुशास्त्री के पास जाता है।ये सब करने के बाद भी मन शान्त नहीं होता है। आचार्य कहते हैं कि जब तक पुण्योदय नहीं होगा तब तक ज्योतिष्क,वास्तु आदि वस्तुएँ सही होने पर भी काम नहीं आयेगी।आचार्यों ने कहा है कि जीवन में शान्ति प्राप्ति के लिए ये बाहरी पदार्थ निमित्त मात्र है, इनके मिलने पर शान्ति मिल ही जाए कोई आवश्यक नहीं परन्तु ये अन्तरंग शान्ति प्राप्त कराने में सहायक हो सकते है।वर्तमान में ज्योतिष्क और वास्तु का बहुत प्रचलन है परन्तु ये दोनों व्यक्ति के पाप-पुण्य के अनुसार कार्य करते है।पुण्य का योग है तो खराब वास्तु भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है और पाप का योग है तो अच्छे प्रकार से वास्तु के अनुसार बनाया गया भवन भी बिगाड़ में कारण बन सकता है इसलिए भक्ति पूजा के माध्यम से पुण्य बढाओ ताकि हमेशा शान्ति बनी रहे।आज प्रातःकाल मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने चातुर्मास के दौरान नगर में दूसरी बार केशलोच किया।इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।