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मनुष्य भव की प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ है इसे प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से शिक्षित व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमान सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 4 नवंबर शनिवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य भव की प्राप्ति अत्यन्त दुर्लभ है इसे प्राप्त करने के लिए देवता भी तरसते हैं क्योंकि मनुष्य भव से ही मुक्ति की प्राप्ति संभव है।इस दुर्लभ मनुष्य भव को प्राप्त करके भी जो इसे इन्द्रिय विषयों में,हिंसादि पाप के कार्यों में तथा क्रोधादि कषायों में लगाता है वह इसे व्यर्थ गंवा देता है।उसकी स्थिति काणे कौवे को भगाने के लिए हीरे को फेंकने के समान है।एक श्वास में 18 बार जन्म-मरण होने वाली उस निगोद पर्याय से दुर्लभता से निकलना होता है,वहाँ से निकलकर त्रस संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याय प्राप्त करना अत्यन्त दुर्लभ है।उस त्रस संज्ञी पंचेन्द्रिय में भी मनुष्य भव बहुत ही पुण्योदय से प्राप्त होता है परन्तु इस मनुष्य भव को प्राप्त कर संसारी प्राणी विषयों में इतना आसक्त हो जाता है कि इसकी अमूल्यता नहीं जान पाने के कारण शारीरिक भोगोपभोग में इसका उपयोग कर दुर्गति का पात्र बनता है।जो व्यक्ति मनुष्य भव की अमूल्यता को जान जाता है वह सांसारिक सुख दुःखमय सुख की ओर आकर्षित नहीं होता है,वह शरीर-भोगों से दूर होकर संसार के नाश का पुरुषार्थ करता है। धर्मसभा के दौरान सभी समाजजन उपस्थित थे।

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