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वचन की मधुरता से ही सब लोगों का प्रेम व स्नेह प्राप्त होता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।जब बोलो प्रेम और हितकारी वचन बोलो। बोलने के बाद मत सोचो,सोचकर बोलो ताकि अपनी बात बदलनी न पड़े।अधिकतर लोग बोलने के बाद सोचते है जो दुगुना कष्ट देने वाला होता है।मानसिक कष्ट के साथ शारीरिक कष्ट का कारण बनता है।आचार्य कहते हैं कि प्रिय वचन बोलने से सभी मनुष्य सन्तुष्ट होते हैं अतः मधुर प्रिय बोलना चाहिए।वचन में दरिद्रता क्या करना ? वचन की मधुरता से सब लोगों का प्रेम प्राप्त होता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 9 नवंबर गुरुवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि और वचनों की कठोरता से किया गया उपकार भी महत्वहीन हो जाता है।कोयल लोक को क्या देती है और गधे क्या छीन लेता है। अपनी वाणी से ही प्रियता और अप्रियता को प्राप्त होते हैं।साधु पुरुष हमेशा मधुर,कर्णप्रिया और हितकर ही बोलते है।आचार्यों ने कहा है कि अवसर आने पर ही बोलना चाहिए क्योंकि बिना प्राप्त अवसर के तथा बिना पूछे बोलने वाले को आदर नहीं होता है।बिन बोले ही हम बहुत कह सकते है।मात्र चर्या का पालन करते चले जाए। निर्दोष चर्या के पालन से अपने आप में बहुत बड़ा उत्तर कहा जाता है।जो मिथ्यादृष्टि है वह बिना विचारे कार्य करता है इसलिए पतन का मार्ग खुल जाता है।इस अवसर पर बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।

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