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कषाय रूपी हींग की गंध को मनरूपी डिब्बे से हटाने के लिए उसे तप रुपी धूप में रखना होगा -  मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।भक्त भगवान के चरणों मे बैठकर यही भावना भाता है कि भगवन्न!आपके चरण कमल मेरे हृदय में रहे और मेरा हृदय आपके चरणों की भक्ति में लीन रहे।भगवान भक्त के हृदय में विराजमान होते हैं पर कब जब मन निर्मल हो।दीपावली का पर्व आ रहा है,सभी लोग घरों की साफ-सफाई में व्यस्त है।भौतिक ईट आदि से बने घर को लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए स्वच्छ करते हैं उसी प्रकार मोक्षलक्ष्मी को हृदय में स्थापित करने के लिए मन-मन्दिर को स्वच्छ करना होगा क्योंकि अनन्त काल बीत कर मन अभी तक स्वच्छ नहीं हुआ या यूं कहे कि मन से राग-द्वेष-मोह आदि कचरा बाहर निकालना होगा तब ही उसमें भगवान के चरण कमल स्थापित हो सकते है।कषाय रूपी हींग की गंध को मन रूपी डिब्बे से हटाने के लिए उसे तप रूपी धूप में रखना होगा।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 10 नवंबर शुक्रवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।मुनि श्री ने कहा कि आज वास्तु के नाम पर कई लोगों के दुःखों के निर्माण के लिए लाखों रुपया खर्च करते है परन्तु पाप कर्म के उदय में कुछ भी लाभ नहीं मिलता है।अतः भगवान को हृदय में विराजमान करने हेतु सर्वप्रथम कषाय,राग-द्वेष और कामादि के चिन्तवन को त्यागकर दया,क्षमा शान्ति को प्राप्त स्थान देना होगा।

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