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आत्म तत्व का का बोध होने पर बाहरी आकर्षण समाप्त होने लगता है - मुनिश्री सुप्रभ सागर

सिंगोली(माधवीराजे)।संसारी प्राणी बाहरी रूप-सौन्दर्य को संवारने में लगे रहते हैं जबकि आचार्य कहते हैं कि शारीरिक बाहरी रूप सौन्दर्य क्षणिक और नाशवान है।इसको स्थायी बनाने के लिए अनन्तकाल व्यतीत कर दिया।आज का दिन भगवान महावीर स्वामी अपने आत्म सौन्दर्य को प्राप्त करने हेतु पुरुषार्थ प्रारंभ किया था।वह आत्म सौन्दर्य जो एक बार प्रकट होने के बाद कभी भी ढलने वाला नहीं है।उस आत्म स्वरूप को निखारने और निहारने का परम पुरुषार्थ हमें भी करना होगा।आचार्य कहते है कि आत्म तत्त्व का बोध होने पर बाहरी आकर्षण समाप्त होने लगता है।यह बात नगर में चातुर्मास हेतु विराजमान मुनिश्री सुप्रभ सागर जी महाराज ने 12 नवंबर रविवार को प्रातःकाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि और बाहरी आकर्षण दूर होने पर ही आत्म सौन्दर्य का दर्शन होता है।कुन्दन का सौन्दर्य अग्नि में तपने पर निखरता है उसी प्रकार आत्मा का सौन्दर्य शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि से निखरता है।उस निखार को प्राप्त करने के लिए पर के स्वरूप को निखारना और निहारत छोड़ना पडेगा।अभी तक शरीर के सौन्दर्य को बहुत निखारा और निहारा अब आत्म सौन्दर्य की ओर जाना है।शारीरिक रूप सौन्दर्य के आकर्षण के कारण नैतिक और चारित्रिक पतन बहुत हो रहा है।यही भव भ्रमण का कारण बन रहा है।आचार्य कहते हैं कि जैसे-जैसे आत्म सौन्दर्य का बोध होने लगता है वैसे-वैसे सुलभ इन्द्रिय विषय भी अच्छे नहीं लगते है।जैसे-जैसे सुलभ इन्द्रिय विषय अच्छे नहीं लगते है वैसे-वैसे आत्म सौन्दर्य का संवेदन होने लगता है।मुनिश्री दर्शित सागरजी महाराज ने कहा कि यात्रा करते समय जैसे गलत गाईड हो तो यात्रा खतरे से खाली नहीं होती है इसलिए हमेशा सही गाईड रखो।कषाय रूपी गाईड गलत गाईड है जो संसार में घूमा देगा और धर्म रूपी गाईड ही सही गाईड है जो संसार से पार मोक्ष में ले जाएगा।आज व्यक्ति धन के लिए दौड धूप करता है उसके लिए गलत काम करता है फिर भी अन्त में उसके हाथ दो गज जमीन भी नहीं आती है।जीवन की वास्तविकता को समझकर उसी अनुरूप जीवन को ढालने का पुरुषार्थ करना चाहिए।सत्य को ढूंढने के लिए कहीं बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है,स्वयं के अन्दर झांको तो सत्य अन्दर ही मिलेगा।सत्य की प्राप्ति के लिए मन की पवित्रता की आवश्यकता होती है।मन को मन्दिर बनाओ सत्य वही विराजमान रहता है जिसके पास सत्य रूपी सजग प्रहरी है उसके अन्दर बुराइयाँ प्रवेश नहीं कर सकती है।भगवान से जब भी प्रार्थना करो तो सद्बुद्धि की प्राप्ति की प्रार्थना करना क्योंकि सद्बुद्धि सम्पत्ति को नहीं जाने देती है।माँ,महात्मा और परमात्मा व्यक्ति के जीवन को सम्भालते और संवारते है।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।

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