सिंगोली(निखिल रजनाती)।दिगम्बर जैनाचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का तीन दिन की सल्लेखना के बाद चंद्रगिरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़ में शनिवार रविवार कि मध्य रात्रि में 2:30 बजे देवलोकगमन के साथ ही समाधि हो गई।समाधि की सूचना मिलते ही सभी समाजजन स्तम्भ शुन्य हो गये।अन्तिम दर्शन के लिए समाजजनों का तांगा लग गया।श्री विद्यासागर जी महाराज ने समाधि से पूर्व पहले आचार्य पद का त्याग करते हुए अपने शिष्य निर्यापक श्रमण मुनिश्री समयसागर जी महाराज को सौंप दिया था।यह बात नगर में विराजमान मुनिश्री दर्शित सागर जी महाराज ने विनयांजलि सभा में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आचार्य श्री आत्म साधना के हिमालय थे हम उनका गुणगान क्या कर सकते हैं उनकी वाणी और उनका जो तन था उन पर उनका कमाल का संयम था जिन्होंने जैन कुल में जन्म लिया है उन्हें कुछ और याद रहे या ना रहे मन्त्रों के महामन्त्र आचार्य श्री का नाम सदा याद रहेगा।विद्यासागर जी महाराज का जन्म देश के आजादी के पहले कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा गाँव में 10 अक्टूबर 1946 को शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था।आपने तीन सौ से अधिक मुनि व आर्यिका दिक्षाए दी।आपने समाज हित में गरीबों के लिए रोजगार व जेलों मे बन्द केदियों के लिए हथकरघा केन्द्रों,बच्चों के पढ़ने के लिए प्रतिभास्थली स्कूल व अस्पताल अनेक गौशालाओं का निर्माण कराया है।आपने मुक माटी सहित 72 किताबे कन्नड़,मराठी व हिंदी में लिखी है।आचार्य के आजीवन नमक का त्याग,मीठे का त्याग, तेल दूध आदि का सेवन नहीं करते थे।आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के समाधि की सूचना मिलते ही नगर मे शोकक की लहर फैल गई।सभी शुन्य हो गए दिगम्बर जैन समाज ने अपनी दुकानें व प्रतिष्ठान बन्द रखे वहीं सोमवार को प्रातःकाल मन्दिरजी में विनयांजलि सभा का आयोजन रखा गया।विनयांजलि सभा में स्थानकवासी श्रीसंघ के अध्यक्ष प्रकाश नागोरी,पुरनमल गांधी,पवन मेहता,संजय गांधी,सुधीर नागोरी,निर्मल खटोड़,महावीर धानोत्या,नगर परिषद अध्यक्ष सुरेशचन्द्र जैन(भायाजी बगड़ा),रतनबाला हरसौरा,लवली ठग ने गुरु चरणों में विनयांजलि अर्पित की।इस दौरान बड़ी संख्या में समाजजन उपस्थित थे।