नीमच। संसार के बंधन को त्यागे बिना सच्चा सुख नहीं मिलता है। संसार की भौतिक सुख सुविधाओं के त्याग बिना भी मोक्ष नहीं मिलता है।ज्ञान के अर्थ को समझे बिना मोक्ष मार्ग नहीं मिलता है। इसलिए ज्ञान के अर्थ को समझना आवश्यक है। मोक्ष की चाहत में मोक्ष नहीं मिलता है। तपस्या भक्ति ज्ञान पूर्ण होने के बाद मोक्ष का मार्ग मिलता है।यह बात दिगंबर जैन संत मुनि प्रशम सागर जी महाराज ने कही।वे फोर जीरो विद्युत केंद्र के पीछे स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर जी में महावीर जन्म कल्याणक महोत्सव के पावन उपलक्ष्य में प्रतिदिन सुबह 8 बजे प्रवाहित धार्मिक अमृत प्रवचन श्रृंखला में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि भौतिक संसार के लक्ष्य की मंजिल नहीं होती हैं। लेकिन तपस्या और भक्ति ज्ञान की मंजिल ही मोक्ष होती है। सिद्ध आत्मा के ज्ञान से जो सुख मिलता है वह संसार में कहीं नहीं मिलता है। बंधन पाप का दु:ख दे सकता है ।पुण्य का सुख नहीं।धर्म सभा में इससे पूर्व शील सागर जी महाराज ने चिता जलती है चित्र तुम घर में लगा देना, चित्र तुमको सिखलाएगा निरंतर होश में रहना, इस तरह इस शरीर चिता में भस्म होना है यहां पर कौन रहना है चार कंधे उठा करके उन्हें शमशान में जला देंगे .. काव्य रचना प्रस्तुत करते हुए मंगलाचरण भी किया। धर्मसभा में यतींद्र सागर जी महाराज ने कहा कि मंदिर प्रतिमा दर्शन एवं मंदिरों में धन दान देने से जन्मो - जन्मों के पाप कर्मों का क्षय होता है।भवन बनाने से पाप बढ़ता है। जिनालय बनाने से पुण्य बढ़ता है यही जिनालय मंदिर तीर्थ का स्वरूप लेते हैं और फिर हजारों लोगों के पापों का क्षय होता है। विधि पूर्वक विधान में धन संपत्ति दान करने से ही पुण्य का फल मिलता है। स्वयं भी तीर्थ दर्शन करें और जो निराश्रित निर्धन लोग हैं उनको भी दर्शन कारण तो पुण्य बढ़ता है।जिन महोत्सव पंचकल्याणक धार्मिक उत्सव में धन लगाकर अपना धन का पुण्य बढ़ा सकते हैं।इससे जो शांति का आनंद मिलता है वह करोड़ों का धन खर्च करने से भी नहीं मिलता है।बैंक में यदि धन जमा करेंगे तो ब्याज मिलेगा और मंदिर में धन लगाएंगे तो वर्षों तक पुण्य का फल ब्याज के रूप में मिलता रहेगा। प्रतिदिन सुबह 8 बजे चालिस विद्युत केंद्र के पीछे स्थित श्री दिगंबर जैन मंदिर में मुनि प्रशमसागर जी महाराज , यतींद्र सागर जी, शील सागर जी महाराज,के अमृत प्रवचन जन्म कल्याणक उत्सव निरंतर प्रवाहित होते रहेंगे।