सिंगोली(माधवीराजे)।नगर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर पर विराजमान आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज व वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री वैराग्यसागर जी महाराज मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज व मुनिश्री संयतसागर जी महाराज के सानिध्य में 7 जुन शुक्रवार को प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक व शान्तिधारा हुई उसके बाद धर्मसभा को संबोधित करते हुए वैराग्यसागर जी महाराज ने कहा कि आज व्यक्ति ने धर्म को भी भोग का साधन बना लिया है वह अच्छे-अच्छे भोगों को भोगने की इच्छा से धर्म करता है।आचार्य कहते हैं कि धर्म करने से भोग सामग्री तो अपने आप मिलती है उसे मांगने की आवश्यकता नहीं है,भगवान के दर्शन करने जाओ तो दिमाग को खाली करके जाओ,घर गृहस्थी दुकानदारी की परिजनों की चिंता छोड़कर मात्र भगवान की भक्ति करने के लिए मंदिर जाओ,आत्मा की शांति करने के लिए व्यक्ति को दूसरे की ओर नहीं हमको प्राप्त वस्तु की ओर ही देखना चाहिए।जो नहीं मिला या जो छूट गया उसकी चिंता मत करो वहीं मुनिश्री सुप्रभसागर जी महाराज ने कहा कि भगवान के दर्शन करने से तीन बातों का ज्ञान होता है।कैसा रूप हो,क्या प्राप्त करना है और कैसे प्राप्त होगा?भगवान यथाजाल बालक के समान निर्विकार होते हैं उनका रूप वासना में विकारी भावों से रहित होने से सुंदरता को लिए है उसे वितरागता और शांत स्वरूप को प्राप्त करने हेतु भगवान की भक्ति करना चाहिए और उसे प्राप्त करने हेतु कुछ करना नहीं है अर्थात पर पदार्थ से दूर मात्र स्वयं को देखना है जबकि मुनिश्री संयतसागर जी महाराज ने कहा कि जो नेता को जानता है वह सबको जानता है।कसाई ने राग-द्वेष भाव ने हमारे आत्म स्वभाव को चुरा लिया है।मानव जीवन पुण्य से मिलता है और अनन्तान्नत जीवो में हम बहुत पुण्यशाली है कि हमें मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ।निगोद की जेल से निकलना कठिन है और वहां से निकलने के बाद उसका लाभ नहीं उठाया तो पुनः वहाँ जाना पड़ेगा।इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित थे।