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जगत् वल्लभ अहिंसा तथा एकता के अग्रदूत पूज्य गुरू श्री चौथमल जी मसा की आदम कद प्रतिमा का आवरण रविवार को

नीमच। जगत् वल्लभ अहिंसा तथा एकता के अग्रदूत पूज्य गुरू श्री चौथमल जी मसा की आदम कद प्रतिमा का आवरण कल रविवार को जैन दिवाकर छात्रावास परिसर में चौधरी परिवार द्वारा किया जा रहा है,पूज्य गुरु जी श्री चौथमल जी मारासाहब का जन्म नीमच की पावन धरा पर ही हुवा था और केवल परिचय की भावना से परम श्रद्धा शिल्प गुरु भक्त समाज रत्न स्वर्गीय उमराव सिंह जी चौधरी की स्मृति में उनके सुपुत्र शेर सिंह चौधरी सुपुत्र बहादुर सिंह चौधरी व चौधरी परिवार द्वारा पूज्य गुरुदेव की प्रतिमा की स्थापना नीमच में की जा रही है।उक्त प्रतिमा का निर्माण दौसा के आगे करवाया गया है जो मार्बल की होकर लगभग 700 किलोग्राम वजनी है।खास बात यह है कि पूज्य गुरुदेव का जन्म,दीक्षा ओर निवार्ण(देवलोक गमन) रविवार को ही हुवा था इस कारण प्रतिमा का आवरण भी रविवार को ही किया जा रहा है।यह आयोजन चौधरी परिवार द्वारा जेन संतो की उपस्थिति में रविवार को प्रातः 8 बजे से प्रारम्भ किया जाएगा जिसमे 2 से 3 हजार समाज जन उपस्थित होंगे,उक्त आयोजन को लेकर शनिवार को जैन दिवाकर छात्रावास में चौधरी परिवार द्वरा प्रेस वार्ता आयोजित की गई।जिसमे बताया गया कि परम आदरणीय प्रातः स्मरणीय जैन दिवाकर प्रसिद्धवक्ता जगत् वल्लभ अहिंसा तथा एकता के अग्रदूत पूज्य गुरू श्री चौथमल जी सा० के ताप बजीमय जीवत व्यक्तित्व तथा कृतित्व की प्रेरणा दायी स्मृति प्रत्येक श्रद्धाशील भक्तजनों दर्शकों के मानस पटल पर स्थायित्व प्रदान हो। इस उद्देश्य से उन्ही की पावन पवित्र जन्मभूमि नीमच नगर (म०प्र०) में केवल परिचय की भावना से परम श्रद्धाशील गुरू भक्त समाजरत्न स्व.उमरावसिंह चौधरी (प्रेरणादायक) की स्मृति में उनके सुपुत्र शेरसिंह चौधरी सुपौत्र बहादुरसिंह चौधरी द्वारा पूज्य गुरूदेव की मूर्ति स्थापित की जा रही है ।जैन दिवाकर गुरूदेव श्री के महिमामय जीवन पर जितना भी कहा लिखा जाय वह 'सूर्य को दीपक दिखाने जैसा ही होगा किंतु अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करने का उपक्रम करना हमारा कर्तव्य है क्योंकि स्पर्शी, ओजस्वी, प्रेम वाणी से केवल जैन समाज ही नहीं, श्रममा संघ ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण जनतारअर्थात् छत्तीस कौम के हृदय तक पहुचाया झोपडी से महलों, राजा से रॉक, हिन्दू, जैन, मुस्लिम, सिक्ख ईसाई सकल मानव समाज में मानवीय संवेदना का स्त्रोत बहाया पूज्य जैन दिवाकर जी म० ने भारतीय आर्य धर्म दर्शन (वेद पुराण गीता भागवत धम्मपद आदि) का ज्ञान तो था ही, इसके साथ ही बाइबिल व कुरान की आइते आपके प्रवचनों में समयानुसार प्रसारित होती थी। आपका कहना था अच्छाई जहाँ भी मिले ले लों। तभी तो आपकी प्रवचन सभा में राजा, महाराजा,ठाकुर, जागीरदार,मौलवी काजी, हिंदू,ब्राह्मण, क्षत्रीय, वैश्य, भील, हरिजन आदि सभी सम्मिलित होते थे और प्रसन्नता से सत्संग का लाभ उठाते, हिंसा हत्या जूआ-मांस-शराब- शिकार-परस्त्री वैश्यागमन आदि का त्याग कर देते थे ।जिन धर्मावलम्बी चाहे श्वेताम्बर स्थानकवासी, श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, श्वेताम्बर तेरापंथ एवं दिगम्बर समाज प्रेम सौजन्यता का आत्मीय स्त्रोत बहाया, गाँव-गाँव में पैदल परिभ्रमणा करके जनता काँ अहिंसा-सत्य-अनेकांत-अपरिग्रह-प्राणीदया की प्रेरणा दी। पापी को पावन, व्यक्ति-जातिवाद को दूर किया, मानवीय संवेदना का जन जन मन में प्रचार प्रसार किया। संघ समाज परिवार में फैली हुई फूट-दर वैमनष्य की धधकती ज्वाला को शांत करने में आपके अमृत वचन कामयाब हुए।जोधपुर तथा पाली जैसे शहरों में आपके प्रेरणा दायी उपदेशों का ऐसा प्रभाव हुआ कि आज भी पयूषण के दिनों कत्लखानें बंद रहते है। इतना ही नाही अन्य व्यापारी व्यवसायी अपने व्यापार बंद रखते है । वे सभी श्रद्धा के साथ अहिंसा दिवस मनाते है।आपके पावन जन्म का गौरव मालवा की धारा को मिला नीमच सिटी में धर्म निष्ठ श्रावक रत्न श्रीमान गंगाराम जी चोरडिया की धर्मपत्नी श्रीमती वीरमाता केसरबाई की कुक्षि से सं0 1934 कार्तिक शुक्ल त्रयोदशी को जन्म लिया। गुरू पाये कवि कुल भूषण चारित्र निष्ठ श्री हीरालालजी न०स० से 1952 फाल्गुन शुक्ल 3 को बोलिया (म०प्र० राजस्थान) में संयम स्वीकार शिष्य बने। जिन धर्म शासन व श्रम की प्रभावना में व उसे यशस्वी बनाने में आपका अपूर्व योगदान रहा। आप में आचार्य पद की सम्पूर्ण क्षमता होने के बावजूद पद स्वीकार नहीं किया, किंतु वर्तमान में आपके नाम से सम्प्रदाय जाना जाता है ।
हमारा परम सौभाग्य है कि ओसवाल चोरडिया के परम पुण्योदय ऐसे प्रतापी यशस्वी तेजस्वी ओजस्वी वर्चस्वी गुरू हमें प्राप्त हुए। आप के जीवन में अनेको विशेषताएँ थी- प्रवचनकार के साथ ही सफल कवि, चरित्र रचनाकार भी थे।समाज में फैली अंध परम्परा, रूढ़ि परम्परा, हिंसात्मक बलि प्रथा आदि अनेक व्यसनों से लिप्त मनुष्य आपके प्रवचनों से व्यसन मुक्त हो जाते थे। आपके सान्निध्य में सदैव शांति प्रसन्नता का स्त्रोत बहा करता था।अगणित पशुओं को अभयदान आपके प्रवचानों से मिलता था।ऐसे परम् पूज्य गुरूदेव को जनता जैन दिवाकर के नाम से जानती है। अजात शत्रु सर्व प्राणी मित्र, संगठन प्रेमी, सर्वोदयी भावों के प्रसारक प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरूदेव श्री चौथमल जी म०सा० की माताजी वीरमाता केसरबाई एवं धर्मपत्नी श्रीमती मानकुंवर जी जैन साध्वी बनी।परम पूज्य गुरुदेव श्री चौथमल जी मारासाहब की प्रतिमा स्थापना का संकल्प हमारे पिता श्रद्धा शील गुरु भक्त समाज रत्न स्वर्गीय उमराव सिंह चौधरी ने लिया था।जिसे चौधरी परिवार पूर्ण करने जा रहा है। इसको लेकर परम पूज्य गुरुदेव की प्रतिमा स्थापना रविवार को प्रातः 8:00 बजे से जैन संतों की उपस्थिति में की जा रही है

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