भावों से करें सच्ची धर्म आराधना
सिंगोली(माधवीराजे)।श्री सिंगोली मंडन पार्श्वनाथ भगवान की छत्रछाया में जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्रीसंघ सिंगोली में पर्युषण पर्व की आराधना हर्षोल्लास से चल रही है जहाँ आराधना करवाने के लिए वर्धमान स्वाध्याय मंडल जावरा से अंशुल भाई,अर्पित भाई, अर्हम भाई पधारे है उन्होंने पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के तृतीय दिवस सोमवार को प्रवचन में कहा कि कर्मरूपी सागर का षोषण करता है पर्युषण।प्रवचन में स्वाध्यायी भाइयों द्वारा विभन्न धर्मोपदेश की बातें कही गई जिनमें बताया कि इस पर्व में श्रुतभक्ति से ज्ञानावरण,चैत्यपरिपाटी से मिथ्यात्व मोहनीय,क्षमापना से चारित्र मोहनीय और अट्ठम तप से अंतराय कर्म टूटते हैं।अमारिदया का पालन करने से अषाता वेदनीय कर्म नष्ट होते है जिससे सुख की प्राप्ति होती है।शुभ भावों में रहने से नरक,पशु के भवों से बचकर उत्तम देव या मानव भव का आयुष्य प्राप्त होता है।देव द्रव्य व साधारण द्रव्य की वृद्धि से शुभ नाम कर्म उपार्जित होता है और आलोचना -प्रायष्चित करने से उच्च गौत्र की प्राप्ति होती है।अमारि प्रवर्तन से मैत्री,साधर्मिक भक्ति के प्रमोद, क्षमापना से मध्यस्थ और तप से करूणा भाव विकसित होता है। संघपूजा,साधर्मिक भक्ति,यात्रात्रिक स्नात्र पूजा,देव द्रव्य वृद्धि,महापूजा,रात्रि जागरण,श्रुतज्ञान भक्ति,उद्यापन,तीर्थ प्रभावना और आलोचना शुद्धि इत्यादि कर्तव्यों का पालन श्रावक-श्राविकाओं को प्रतिवर्ष करना चाहिए।दैनिक रूप से हमें परमात्मा की पूजा,गुरू की सेवा, अनुकम्पा दान,सुपात्रदान,गुणानुराग, जिनवाणी श्रवण इन छः कर्तव्यों का पालन भी करना चाहिए।मनुष्य रूपी वृक्ष पर ये छः कर्तव्य फल के समान हैं जो सदैव हमें मधुरता प्रदान करता रहता है।पर्युषण पर्व पर भावों से सच्ची धर्म आराधना करनी चाहिए।पोषध व सामायिक का महत्व भी बताया।कल्पसूत्र जी व पांच ज्ञान की बोलियां भी लगाई गई।सायंकालीन पक्खी प्रतिक्रमण हुआ तत्पश्चात परमात्मा की आरती हुई और परमात्मा की भक्ति हुई।